सफला एकादशी की कथा
ब्रह्मांड में सभी तीर्थों का महत्व अत्यंत उच्च है। उनमें से एक तीर्थ 'नरयाण' नामक है, जो भगवान विष्णु का स्वयं रूप है। एक बार भगवान श्रीकृष्ण और नारद मुनि के बीच एक विवाद हुआ। नारद मुनि ने कहा कि 'नरयाण तीर्थ' का तत्व बहुत महत्वपूर्ण है और इसका व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है। इसके विपरीत, भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि 'सफला एकादशी' का व्रत करने से भी सभी पापों का नाश होता है और मनुष्य अपने गुणवत्ता का परिचय देता है।
इस पर नारद मुनि ने भगवान से प्रश्न किया, "इस एकादशी का नाम क्या है और इसकी कथा क्या है?" इस पर भगवान ने उन्हें सफला एकादशी का व्रत करने के फल के बारे में बताया।
कथा शुरू होती है एक समय की बात है, जब एक राजा अपने राज्य में शासन कर रहे थे। उनका नाम महाराज कुंदधर्म था। वे धर्मपरायण और धार्मिक थे, लेकिन अपनी पत्नी, राणी शुंधरा, धर्म से परे रहती थीं। उन्होंने अपने पति को सफला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी, लेकिन राजा ने उसे नकारा। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें अपने पापों का नाश होता है और वे बहुत दुःखी हो जाते हैं।
इस घटना के बाद, महाराज कुंदधर्म ने अपने गुरु से पूछा और उन्होंने उन्हें सफला एकादशी के व्रत के फल के बारे में बताया। उन्होंने व्रत की विधि के साथ-साथ कथा भी सुनाई।
इस प्रकार, महाराज कुंदधर्म ने सफला एकादशी का व्रत किया और उन्होंने अपने पापों का नाश कर अनंत काल में परमधाम को प्राप्त किया।
इस प्रकार, सफला एकादशी का व्रत श्रद्धालु व्रती के जीवन में सफलता, सुख, शांति और मोक्ष का प्राप्ति कराता है।
पूर्वकथा:
ब्रह्मांड में सभी तीर्थों का महत्व अत्यंत उच्च है। एक बार भगवान श्रीकृष्ण और नारद मुनि के बीच एक विवाद हुआ। नारद मुनि ने कहा कि 'नरयाण' तीर्थ का तत्व बहुत महत्वपूर्ण है और इसका व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है। इसके विपरीत, भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि 'सफला एकादशी' का व्रत करने से भी सभी पापों का नाश होता है और मनुष्य अपने गुणवत्ता का परिचय देता है।
महत्व:
इस एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसका पालन करने से व्रती को सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
सफला एकादशी का पूजन विधि:
1. प्रारंभिक तैयारियां:
व्रती को अगले दिन स्नान करना है, इसलिए पूर्व रात्रि से ही साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए।
2. पूजा सामग्री:
इस व्रत के लिए आपको पूजन सामग्री की तैयारी करनी होगी, जिसमें चावल, दाल, फल, दूध, दही, घी, शहद, पंचामृत, नारियल, तिल, बर्तन, लाडू, थाली, दीपक, कपड़े और बत्ती शामिल हो सकते हैं।
3. पूजन की विधि:
- व्रती को अन्न और फलों से श्रीकृष्ण जी को पूजन करना चाहिए।
- व्रती को सफला एकादशी की कथा का पाठ करना चाहिए।
- भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, फल और धूप देना चाहिए।
- व्रती को पंचामृत का भोग चढ़ाना चाहिए।
- व्रती को प्रशाद बांटना चाहिए, इसके बाद व्रती व्रत से उत्तर देने के लिए प्रारंभ कर सकते हैं।
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