आलस आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन( laziness is biggest enemy)


आलस आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन( laziness is biggest enemy
किसी गांव में एक ब्राह्मण रहा करता था। वह बड़ा भला आदमी था, लेकिन साथ ही काम को टाला करता था।
वह यह मानकर चलता था कि जो कुछ होता है, भाग्य से होता है, वह अपने हाथ-पैर नहीं हिलाता था। वह बहुत आलसी था।
एक दिन एक साधु उसके घर आया। ब्राह्मण और उसकी घरवाली ने उसका खूब आदर-सत्कार किया।
साधु ने खुश होकर चलते समय ब्राह्मण से कहा – “तुम बहुत गरीब हो ! लो मैं तुम्हें पारस पथरी देता हूं।
सात दिन के बाद मैं आऊंगा और इसे ले जाऊंगा। इस बीच तुम जितना सोना बनाना चाहो, बना लेना।”
ब्राह्मण ने पथरी ले ली। साधु चला गया। उसके जाने के बाद ब्राह्मण ने घर में लोहा खोजा, उसे बहुत थोड़ा लोहा मिला।
वह उसी को सोना बनाकर बेच आया और कुछ सामान खरीद लाया।
अगले दिन स्त्री के बहुत जोर देने पर वह लोहा खरीदने बाजार में गया तो लोहा कुछ महंगा था। वह घर लौट आया।
दो-तीन दिन बाद फिर वह बाजार गया तो पता चला कि लोहा तो अब पहले से भी महंगा हो गया है।
‘कोई बात नहीं।’ उसने सोचा – ‘एकाध दिन में भाव जरूर नीचे आ जाएगा, तभी खरीदेंगे।’
किंतु लोहा सस्ता नहीं हुआ और दिन निकलते गए।
आठवें दिन साधु आया और उसने अपनी पथरी मांगी तो ब्राह्मण ने कहा – “महाराज, मेरा तो सारा समय यों ही निकल गया।
अभी तो मैं कुछ भी सोना नहीं बना पाया। आप कृपा करके इस पथरी को कुछ दिन मेरे पास और छोड़ दीजिए।”
लेकिन साधु राजी नहीं हुआ उसने कहा – “तुझ जैसा आदमी जीवन में कुछ नहीं कर सकता। तेरी जगह और कोई होता तो कुछ-का-कुछ कर डालता।
जो आदमी समय का उपयोग करना नहीं जानता वह कभी सफल नहीं होता।”
ब्राह्मण पछताने लगा, पर अब क्या हो सकता था। साधु पथरी लेकर जा चुका था।
उसे अपने आलस और भाग्य पर जरूरत से ज्यादा यकीन की कीमत चुकानी पड़ी, इसलिए कहा जाता है कि आलस आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन होता है।
There used to be a Brahmin in some village.  He was a very good man, but also avoided work.
 He used to believe that whatever happens, happens by luck, he did not move his hands and feet.  He was very lazy.
One day a monk came to his house.  The Brahmin and his family honored him a lot.
The sadhu said to the Brahmin while walking happily - “You are very poor!  Here I give you the stone stones.
After seven days I will come and take it.  Meanwhile, make as much gold as you want.
The Brahmin took a stone.  The monk went away.  After he left the Brahmin found iron in the house, he found very little iron.
He sold it by making gold and bought some goods.
The next day, on the insistence of the woman, when he went to the market to buy iron, iron was somewhat expensive.  He returned home.
After two or three days, when he went to the market again, it came to know that iron has now become even more expensive than before.
"Never mind." He thought - "In a few days the price will definitely come down, only then will you buy."
But iron did not become cheap and days passed.
On the eighth day, the monk came and asked for his stone, then the Brahmin said - "Your Majesty, all my time has passed.
I have not been able to make any gold yet.  Please kindly leave this stone with me some more days. "
But the monk did not agree, he said - "A man like you cannot do anything in life."  If there was someone else in your place, I would have done something.
A man who does not know how to use time never succeeds. "
The Brahmin repented, but what could happen now.  The monk had taken away stones.
He had to pay more for his laziness and luck than he believed, so laziness is said to be man's worst enemy.

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